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Today We Are Writing Best 15+ Hindi Short Stories With Moral for kids :- ये कहानियां आपको Inspire, motivate करेंगी।
These Hindi Short Stories With Moral For Kids:- Stories Are, Perhaps, The Best Way To Teach Life Lessons To Children.
दोस्तो इस पेज हम आपके लिए दुनिया की 13 सबसे अच्छी और चुनिंदा कहानियों का संग्रह लेकर आए है,। ऐसी कहानियां जिन को पढ कर आपके सोचने का तरीका पूरी तरह बदल जाएगा।
और आपके जीवन में सक्रात्मक बदलाव आएंगे हमारा आपसे बादा है कि इन को पड़ने के बाद आप निराश नहीं होंगे और सफलता की ओर कदम बढ़ाएंगे।
धन्यबाद-
Top 15+ new hindi short stories with moral for kids collection
》फंदा
》आप से बढ़कर कुछ नही
》ऊंची सोच
》साधु की सीख
》डरना मना है
》फालतू का ज्ञान
》कुँए का मेंढक
》सबसे बड़ा शत्रु
》सबसे बड़ा ज्ञान
》आपका मूल्य
》खुशियों का राज़
》जो होता है अच्छा होता है
》4 दोस्त
》सफलता का रह्स्य
》बादल और राजा – दो घोड़ों की कहानी
》मूर्ख मित्र
》अपना अपना नजरिया
》ईमानदारी और सच्चाई की कीमत
》काला या सफ़ेद
एक नामी मास्टर अपने चेलों को लेकर एक जंगल में गया । उस जगह बहुत जंगली बंदर रहते थे । वहां मास्टर ने एक मटकी की शेप का डिब्बा लिया । डिब्बे में बीच में एक छोटा छेद कर दिया और उसमें मीठे चावल भर दिए । इसके बाद मास्टर ने डिब्बे को एक जंजीर से बांध दिया । सब एक जगह खड़े होकर इंतजार करने लगे । मीठे चावल बंदरों को बहुत पसंद होते हैं ।
कुछ देर बाद वहां बहुत बड़ा बंदर आया । उसे चावल की सुगंध आई । उसने अपना पंजा उस छेद से अंदर डाला और चावल निकालने की कोशिश करने लगा । पंजा अब मुट्ठी बन गई थी और छेद छोटा होने के कारण हाथ बाहर नहीं आ रहा था इतने में वहां एक चीता आगया ।
वह बंदर का शिकार करने के लिए उस ओर बढ़ने लगा । सभी चिल्लाने लगे कि वहां से भाग जाओ , कंकड़ – पत्थर भी फेंके , पर कोई फायदा नहीं हुआ । बंदर भूखा भी था और वह मीठे चावल नहीं छोड़ना चाहता था । वह चावल समेत मुट्ठी निकालने में लगा रहा । आखिर में वह चीते का भोजन बन गया । गुरु ने पूछा , ‘ किस जाल में फंसकर बंदर मारा गया ? एक शिष्य ने कहा , ‘ डिब्बा । ‘ नहीं ‘ , गुरु ने कहा । लालच ।
एक बार कि बात है- एक आदमी कही से गुज़र रहा था,तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा के उनके अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई हैं।
उसे इस बात का बड़ा आश्चर्य हुआ के हाथी जैसे ताक़तवर जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं।
उसने पास खड़े एक किसान से पूछा,
के भला ये हाथी किस तरह इतनी शांति से खड़े हैं और भागने की कोसिस क्यो नहीं कर रहे?
किसान बोला- इन हाथियों को छोटे पन से ही ये रस्सियों से बांधा जाता है, उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती हैं के इस बंधन को वो तोड़ सके।
बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी न तोड़ पाने की वजह से उन्हें धीरे-धीरे ये यक़ीन हो जाता हैं के वो इन रस्सियों को नहीं तोड़ सकते, और बड़े होने पर भी इनका ये यकीन बना रहता है! इसलिए वो कभी इन्हें तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते।
वह आदमी आश्चर्य में पड़ गया, के ये जानवर इसलिए रस्सी नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात पर यकीन करते हैं, के वो ऐसा नहीं कर सकते।
इन हाथियों की तरह ही हम में से कई लोग पहली बार मिली असफलता के कारण ये मान बैठते हैं के अब हमसे ये काम नहीं हो सकता। और अपनी ही बनाई हुई मानसिक जंजीरों में बंधे हुए पूरा जीवन गुज़ार देते हैं।
You are stronger than you might be think..
Moral Of This Story
याद रखे असफलता ज़िन्दगी का एक हिस्सा है। और बार-बार कोसिस करने से ही सफलता मिलती हैं। अगर आप भी ऐसे किसी बधन से बंधे है, जो आपको-आपके सपने सच करने से रोक रहा है, तो उससे तोड़ दीजिए
एक बार एक लड़का एक खिलौने बचने वाले के पास खड़ा था।
तभी बहाँ एक कार आकर रूकती है, उसमे से एक आदमी निकलता है।
खिलौने खरीदता है और कार में बैठ जाता है।
तभी उस आदमी का ध्यान खिलौने वाले के पास खड़े उस लड़के पे जाता हैं।
वो बच्चा अमीर आदमी की कार को निहार रहा होता हैं।
उस अमीर आदमी को रहम आ जाता हैं।
वो उस बच्चे को अपनी कार में बैठा लेता है।
• बच्चा- आपकी कार बहुत महंगी हैं ना?
• आदमी- हां। मेरे बड़े भाई ने मुझे उपहार में दी है।
• बच्चा आपके बड़े भाई कितने अच्छे आदमी हैं।
• आदमी- मुझे पता है तुम क्या सोच रहे हो। तुम भी ऐसी कार चाहते हो ना?
• बच्चा- नहीं मैं भी आपके बड़े भाई जैसे अमीर आदमी बनना चाहता हूँ।
• क्योंकि मेरे भी छोटे-छोटे भाई बहन हैं ना।
Moral Of This Story
अपनी सोच को हमेशा ऊँचा रखें दुसरो की अपेक्षाओं से भी कही ज्यादा ऊँचा
एक समय की बात है-
काशी गाव में एक संत रहते थे, शिष्यों की शिक्षा पूरी होने के बाद संत ने उन्हें अपने पास बुलाया और कहा-
प्यारे शिष्यों समय आ गया है अब तुम सबको समाज के कठोर नियमों का पालन करते हुए विनम्रता से समाज की सेवा करनी होगी।
तो एक शिष्य ने कहा- गुरुदेव हर समय विनम्रता से काम नहीं चलता!
संत समझ गए के अभी भी उसमे अरमान मौजूद है। थोड़ी देर चुप रहने के बाद संत बोले- ज़रा मेरे मुँह के अंदर झाँक कर देख के बताओ अब कितने दाँत बचे हैं!
बारी-बारी से शिष्यों ने संत का मुँह देखा और एक साथ बोले-आपके सभी दाँत टूट चुके हैं।
संत ने कहा जीभ हैं के नहीं?
संत बोले-दाँतो को देखने की जरूरत नहीं है,
जीभ जन्म से मृत्यु तक साथ रहती हैं।
हैं न अजीब बात और दाँत जो बाद में आते हैं!
वो पहले ही छोड़ जाते है जब की उन्हें बाद में जाना चाहिए। आखिर ऐसा क्यों होता है?
एक शिष्य ने बोला ये तो जिंदगी का नियम है,
संत- नहीं बच्चों इसका जबाब इतना सरल भी नहीं है, जितना तुम सभी समझ रहे हो।
संत- जीभ इसलिए नहीं टूटती क्योंकि उसमें लोच हैं वह विनम्र होकर अंदर पड़ी रहती हैं, उसमे किसी तरह का अहंकार नहीं है उसमे विनम्रता से सब कुछ सहने की शक्ति है, इसलिए वह हमारा साथ देती हैं।(moral stories in Hindi written)
जब की दाँत बहुत कठोर होते हैं,उन्हें अपनी कठोरता पे अभिमान होता हैं,
वो जानते हैं उनके वजह से ही इंसान की खूबसूरती बढ़ती है, इसलिए वह बहुत कठोर होते है,
उनका ये अहंकार और कठोरता उनकी बर्बादी का कारण बनती हैं, इसलिए तुम्हें अगर समाज की सेवा अच्छे से करनी हैं,
तो जीभ की तरह नम्र बनकर नियमों का पालन करना करो।
Moral Of This Story
विनम्रता ही हमें जानवरों से अलग करती हैं
एक बार की बात है एक जंगल में एक सियार रहता था,
वो काफ़ी बूढ़ा हो चुका था, उसमे इतनी ताकत नहीं बची थी कि शिकार करके अपनी भूख मिटा सके।
एक रात जब शियार भूख से इधर उधर भटक रहा था तभी उसे पता चला कि एक रास्ते पर एक कुत्ता का मृत शरीर पड़ा है, तब वह उस रास्ते चल देता है,
फिर अचानक उसको उस रास्ते से बहुत डरावनी आवाजे सुनाई देती हैं।
तब वह रास्ता बदल देता है पर सोचता है अगर रास्ता बदल दिया तो वैसे भी भूख से मरने वाला ही हूं तो क्यों ना इसी रास्ते पर जाकर अपनी भूख मिटाऊं।
तब वह उसी रास्ते पे चल देता है जहां कुत्ते का मृत शरीर पड़ा था।
वहां पहुंच कर उसने देखा कि वो डरावनी आवाजे दो पेड़ो की डालियों के आपस में टकराने से आ रही थी, जो हवा की वजह से ही आपस में टकरा रही थीं।
ये देख कर शियार जोर जोर से हंसने लगता है,
मै फालतू में डर रहा था अच्छा हुआ मैंने रास्ता नहीं बदला बरना भूख से मर जाता।
फिर वो मृत कुत्ते का शरीर खाकर अपनी भूख मिटाता है और वापस चला जाता है।
Moral Of This Story
दोस्तो इसीलिए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहो बिना इन डरावनी आवाजों पर ध्यान दिए और सफल बनो, ये सब फालतू की आवाजे होती है जो आपको ज़िन्दगी में आगे नहीं बढ़ने देती हैं।
एक बार की बात है एक जंगल में बुलबुल नाम की चिड़िया रहती थीं, ठंड का मौसम आने वाला था सभी जानवर उससे बचने के लिए तैयारी करने लगे।
बुलबुल ने भी एक शानदार घोसला बनाया और आने वाली बारिश से बचने के लिए उसे चारो तरफ से घास से ढक दिया।औ
एक दिन अचानक बहुत घनघोर वर्षा शुरू हो गई जिससे बचने के लिए सभी जानवर इधर उधर भागने लगे, बुलबुल आराम से अपने घोसले में बैठ गई।
तभी एक बंदर खुद को बचाने के लिए उस पेड़ के नीचे आ पहुंचा।
बंदर की हालत देख बुलबुल ने कहा- तुम इतने होशियार बने फिरते हो फिर भी बारिश से बचने के लिए घर नहीं बनाया।
ये सुनकर बंदर को बहुत गुस्सा आया पर वह चुप रहा।
बुलबुल फिर बोली पूरी गर्मी आलस में बिता दी अच्छा होता अपने लिए घर बना लेते।
बंदर ने अपने गुस्से को काबू किया और चुप रहा।
वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रही थी और हवाएं और तेज हो रहीं थी, बेचारा बंदर ठंड से कापने लगा, पर बुलबुल ने तो मानो कसम खा रखी थी उसे छेड़ने की।
बह फिर बोली तुमने थोड़ी अक्ल दिखाई होती तो इस हालत…
बुलबुल ने अपनी बात खतम भी नहीं की थी के बंदर पेड़ पर चढ़ गया और बोला- भले मुझे अपना घर बनाना नहीं आता पर तोड़ना अच्छे से आता है।
ये कहते हुए बंदर से बुलबुल चिड़िया का घोसला
तहस नहस कर दिया।
अब बंदर की तरह बुलबुल भी बे घर हो गई।
Moral of this story
दोस्तो किसी मुस्किल में पड़े व्यक्ति की सहायता कर सकते हो तो जरूर करो पर फालतू का ज्ञान मत दो।
एक कुए में एक मेंढक रहता था। उसके पास समुन्द्र से एक बड़ी मछली आई।
उसने मेंढक से बोला- मैं अभी-अभी समुन्द्र से आई हूं।
उस मेंढक ने पूछा- ये समुन्द्र क्या होता हैं ?
मछली बोली- समुन्द्र मतलब जहां पे बहुत पानी हैं। मेंढक बोला-बहुत पानी मतलब कितना बहुत पानी हैं?
फिर मेंढक ने एक चौथाई कुएं की छलांग मारी और बोला क्या इतना पानी है ?
मछली बोली- अरे नहीं मेंढक!
इतना नहीं बहुत पानी हैं।
मेंढक ने फिर आधे कुंए की छलांग मारी और बोला-क्या इतना पानी हैं?
मछली बोली-अरे नहीं ये तो कुछ भी नहीं हैं। इससे भी ज़्यादा पानी होता हैं।
फिर मेंढक ने परेशान होकर पूरे कुंए का एक चक्कर लगाया और बोला-क्या इतना पानी होता हैं समुन्द्र में ?
मछली बोली-अरे नहीं….. मेरे प्यारे मेंढक कैसे समझाऊ मैं तुम्हें, इससे भी ज़्यादा पानी होता हैं।
मेंढक बोला-तुम झूठ बोल रही हो क्योंकि इससे ज़्यादा पानी तो हो ही नहीं सकता।
क्योंकि मेंढक की सोच और उसकी दुनिया यही से शुरू होती हैं और यही पे खत्म होती हैं।
इससे ज़्यादा पानी उस मेंढक ने ना कभी देखा था और
ना ही कभी सुना था, जब सुना नहीं था, देखा नहीं था,
तो इससे ज़्यादा सोचेगा कैसे।
मछली बोली-आ बैठ मेरे पीछे और उसको ले गई समुन्द्र में।
मछली- ले देख कितना पानी हैं समुन्द्र में।
जैसे ही मेंढक ने समुन्द्र में इतना पानी देखा तो उसकी आँखें खुली की खुली रह गई।
मेंढक- अरे ये क्या हैं इतना पानी तो मैंने आज तक नहीं देखा।
मेंढक की बोलती बंद हो गई।
Moral Of This Story
हमेशा अपनी सोच से बड़ा सोचने की कोसिस करनी चाहिए,जरूरी नही के जो हमने देखा न हो वो हो न।
बहुत समय पहले की बात है- एक गांव में एक लड़का रहता था वो बहुत ही ग़ुस्सैल था।
छोटी-छोटी बात पे अपना आपा खो बैठता।
उस लड़के से परेशान होकर उसके पिता ने उसे कीलो से भरा थैला दिया और कहा-
अब जब भी तुम्हें गुस्सा आये तो तुम इस थैले में से एक कील निकलना और बाड़े में ठोक देना।
अगले दिन उस लड़के को चालीस बार गुस्सा आया इतनी ही कीले उसने उस बाड़े में ठोक दी। धीरे धीरे थैले में कीलो की संख्या घटने लगी। फिर उस लड़के ने सोचा इतनी मेहनत करने से बेहतर हैं ।
अपने गुस्से पे काबू पा लिया जाए। उसने कुछ ही हफ़्तों में अपने गुस्से पे बहुत हद तक काबू करना सीख लिया।
और फिर एक दिन ऐसा आया उस लड़के ने दिन में एक भी बार गुस्सा नहीं किया। जब उसने अपने पिता को ये बात बताई तो उसके पिता ने उसको फिर एक काम दे दिया।(Moral stories in Hindi written)
उन्होंने कहा-अब हर दिन जिस दिन तुम्हें एक बार भी गुस्सा ना आए बाड़े में से एक कील निकाल देना। लड़के ने ऐसा ही किया।
और बहुत दिन बाद एक ऐसा दिन आया जब लड़के ने बाड़े में लगी आख़री कील को भी निकाल दिया और तब वो पिता के पास खुश होकर गया।
तब पिता जी उसका हाथ पकड़ कर उस बाड़े के पास ले गए और बोले-बेटे तुमनें बहुत अच्छा काम किया लेकिन क्या तुम बाड़े में हुए छेदों को देख पा रहे हो।
अब वो बाड़ा पहले जैसा नहीं बन सकता जैसे वो पहले था। तुम गुस्से में कुछ ऐसा कह जाते हो के वो शब्द इसी तरह सामने वाले इंसान के दिल पे गहरा घाव छोड़ जाते है।
Moral Of This Story
गुस्से में हम कई बार बहुत गलत कर जाते हैं, जिसकी वजह से हमें पूरी जिंदगी पछताना पड़ता है, क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है इस पे काबू पाना सीखे।
एक बार की बात है-
एक गांव में एक मूर्तिकार रहा करता था। वो काफी खूबसूरत मूर्ति बनाता था और इस काम से वो अच्छा कमा लेता था।
उसे एक बेटा हुआ
इस बच्चे ने बचपन से ही मूर्ति बनानी शुरू कर दी और बेटा भी बहुत अच्छी मूर्ति बनाने लगा, बाप अपने बेटे की मूर्ति देख कर बहुत खुश होता।
लेकिन बाप हर बार बेटे की मूर्तियो में कोई न कोई कमी निकाल दिया करता था।
बेटा भी कोई शिकायत नही करता था। वो अपने बाप की सलाह पर अमल करते हुए अपनी मूर्तियों को और बेहतर करता गया।
इस लगातार सुधार की बजह से बेटे की मूर्तियां बाप से अच्छी बनने लगीं। और ऐसा भी समय आ गया लोग बेटे की मूर्तियों को बहुत पैसे देकर खरीद ने लगे।
जबकि बाप की मूर्तियां उसके पहले वाले दाम में ही बिकती रहीं।
लेकिन बाप अभी भी बेटे की मूर्तियो में कमियां निकाल ही देता था, लेकिन बेटे को अब ये अच्छा नही लगता था।
वो बिना मन के अपनी कमियों को मान लेता था
और सुधार कर देता था।
फिर एक दिन ऐसा भी आया जब बेटे के सब्र ने जवाब दे ही दिया।
बाप जब कमिया निकाल रहा था तब बेटा बोला-
आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे आप बहुत बड़े मूर्तिकार हैं।
अगर आपको इतनी ही समझ होती तो आपकी बनाई हुई मूर्तिया मेरे से महंगी बिकती।
मुझे नहीं लगता की आप की सलाह की मुझे कोई जरूरत है। मेरी मूर्तिया Perfect हैं।
बाप ने बेटे की ये बात सुनी और उसे सलाह देना और उसकी मूर्तियों में कमियां निकालाना बन्द कर दिया।
कुछ महीने तो लड़का खुश रहा फिर उसने ध्यान दिया कि लोग अब उसकी मूर्तियों की उतनी तारीफ नहीं करते जितनी पहले किया करते थे।
और इसकी मूर्तियों के दाम भी गिरने लगे।
शुरू में तो बेटे को कुछ भी समझ नही आया।
फिर वो अपने बाप के पास गया।
और उसे समस्या के बारे में बताया।
बाप ने उसे बहुत शान्ति से सुना जैसे उसे पता था कि एक दिन ऐसा भी आएगा।
बेटे ने भी इस बात को notice किया और बोला-
क्या आप जानते थे कि ऐसा होने वाला है?
बाप बोला- हाँ।!
क्योकि अब से कई साल पहले मैं भी ऐसे हालात से टकराया था।
बेटे ने सवाल किया- फिर आपने मुझे समझाया क्यों नही?
बाप ने जवाब दिया- क्योकि तुम समझना नहीं चाहते थे।
मै जानता हूं कि मैं तुम्हारे जितनी अच्छी मूर्ति नही बनाता, ये भी हो सकता है कि मूर्तियों के बारे में मेरी सलाह गलत हो और ऐसा भी नही है कि मेरी सलाह की बजह से तुम्हारी मूर्ति अच्छी बनी हो।
लेकिन जब मैं तुम्हारी मूर्तियों में कमियां दिखाया करता था तब तुम अपनी बनाई हुई मूर्तियों से संतुष्ट(satisfy) नही होते थे।
तुम खुद को और भी ज्यादा बेहतर करने की कोशिश करते थे और बही बेहतर होने की कोशिश तुम्हारी कामयाबी का कारण था।
लेकिन जिस दिन तुम अपने काम से संतुष्ट हो गए
और तुम ने ये भी मान लिया कि इस काम मे और बेहतर होने की गुंजाइश नही है, तब तुम्हारी Growth(विकाश) भी रुक गयी।
लोग हमेशा तुम से बेहतर की उम्मीद करते हैं और यही कारण हैं की तुम्हारी मूर्तियों की तारीफ नही होती और न ही तुम्हे उनके लिए ज्यादा पैसे मिलते हैं।
बेटा कुछ देर चुप रहा फिर उसने सवाल किया तो अब मुझे क्या करना चाहिए।
बाप ने एक लाइन में जवाब दिया- असंतुष्ट (Un satisfy) होना सीख लो।
और मान लो कि तुममे और बेहतर होने की गुंजाइस बाकी है यही एक बात तुम्हे आगे बेहतर होने के लिए प्रेरित ( Inspire) करती रहेगी और तुम्हे हमेशा बेहतर बनाती रहेगी।
Moral Of This Story
stay hungry stay foolish
– Steve Jobs ]
ये बात उस टाइम की है,जब Sandeep Maheswari नवाबों का शहर लखनऊ Seminar के लिए पहुँचे थे। इंडिया के एक जाने माने Motivational Speaker Sandeep Maheshwari G अपने हाथों में 500 सौ रुपये का नोट लिए Seminar Hall पहुँचते हैं!
उस Seminar में बहुत सारे लोग बैठे हुए थे, उन्होंने 500 सौ रुपये का नोट दिखाते हुए पूछा- कौन कौन इस नोट को लेने की इच्छा रखता हैं?
फिर Seminar में बैठे लोगों के हाथ ऊपर उठने लगे। Maheshwari G बोले-मैं आप मे से किसी को ये नोट देने वाला हूं, ये बोलकर उन्होंने उस नोट को हाथ में तोड़-मोड़ दिया।
इसके बाद उन्होंने पूछा- इससे अब कौन-कौन लेना चाहता हैं? अभी भी लगभग सारे लोगों के हाथ ऊपर ही थे,
Maheshwari G बोले-क्या होगा अगर मैं ये करू? ये कहकर उन्होंने 500 सौ रुपये के नोट को नीचे फेंक दिया!
और उससे अपने जूते से रगड़ने लगे फिर उन्होंने वो नोट को अपने हाथ मे लिया।
लेकिन अब वो नोट पूरी तरह तोड़ मोड़ और और गंदा हो गया था। फिर उन्होंने पूछा क्या अभी भी इस नोट को कोई लेना चाहता हैं? Seminar में बैठे लोगों के हाथ अभी भी ऊपर ही थे,
Dear Friends इससे कोई फर्क नहीं पड़ता मैंने इस नोट के साथ क्या-किया? लेकिन अब भी आप इससे लेना चाहते हैं, क्योंकि इतना कुछ करने के बाद भी इसका मूल्य कम नहीं हुआ है। अब भी इसका मूल्य 500 सौ रुपये ही है।
यही चीज़ हुमारे साथ होती हैं, कई बार हम अपनी ज़िंदगी में गिरते हैं। कठनाइयों से लड़ते-लड़ते थक जाते हैं, अपने अपने ग़लत Decision से भारी मुस्किलो का सामना करते हैं!
इन सारी परिस्थितियों में जूझ कर हम अपने आप को मूल्यहीन और बेकार समझने लगते हैं।
लेकिन इसका ये मतलब नहीं है, के हमारी ज़िंदगी में क्या हो चुका है, और भविष्य में क्या होगा। आप अपना महत्व कभी नहीं खो सकते।
Moral Of This Story
आप ख़ास हैं_ इसे कभी न भूले।
You Are Unique
एक बार 50 लोगों का ग्रुप एक मीटिंग में हिस्सा ले रहा था, मीटिंग शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट बीते थे। Speaker अचानक ही रुका और सभी Participants को गुब्बारे देते हुए बोला आप सभी को इस गुब्बारे पर अपना नाम लिखना है,
Speaker के कहने पर सभी ने ऐसा ही किया, नाम लिखे हुए गुब्बारो को एक दूसरे कमरे में रखवा दिया गया।
Speaker ने अब सभी को एक साथ उस कमरे में जाकर 5 मिनट के अंदर अपने नाम वाला गुब्बारा ढूँढने के लिए बोला-सारे Participants तेज़ी से अंदर घुसे और पागलों की तरह आपने नाम वाला गुब्बारा ढूंढने लगे।
पर इस अफरा-तफरी में कोई भी अपने नाम का गुब्बारा नहीं ढूंढ पा रहा था। 5 मिनट बाद सभी को बाहर बुला लिया गया।
Speaker-अरे क्या हुआ आप सभी खाली हाँथ क्यो हैं क्या किसी को अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिला?
Participants- नहीं…..हमने बहुत ढूंढा हर बार किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाँथ आया।
Speaker-कोई बात नहीं आप लोग फिर से एक बार कमरे में जाये, पर इस बार जिससे जो भी गुब्बारा मिले, उससे अपने हाँथ में लेकर उस वियक्ति का नाम पुकारें, जिसका नाम उसपर लिखा हुआ है।
एक बार फिर सभी Participants कमरे में बहुत शान्त तरीक़े से गए। कमरे में किसी तरह की अफरा-तफ़री नहीं मची हुई थी। सभी ने एक-दूसरे को उनके नाम के गुब्बारे दिए! और 3 मिनट में ही बाहिर आ गए।
अब Speaker ने गंभीर होते हुए बोला- बिल्कुल यही चीज़ हमारी ज़िन्दगी में भी हो रही हैं। हर कोई अपने लिए जी रहा हैं। हमें इस बात से कोई मतलब नहीं के हम किस तरह औरो के लिए मदद कर सकते है।
हम तो बस पागलों की तरह बस अपनी ही खुशिया ढूंढ रहे हैं। और बहुत ढूंढने के बाद भी कुछ नहीं मिलता हमारी ख़ुसी दुसरो में ही छुपी हुई हैं।
Moral Of This Story
जब हम औरो को खुशियां देना सीख जाएँगे तो अपने-आप ही हमें हमारी खुशियां मिल जायेगी।
एक बार अख़बर और बीरबल शिकार पे जा रहे होते हैं।
और अख़बर का अंगूठा कट जाता है। तलवार निकालते वक़्त…वो वॉखला जाता। चीखने-चिल्लाने-लग जाता हैं।
कहता-हैं सिपाहियों जल्दी जाओ-जाकर वेद को बुलाकर लाओ देखो मेरा अँगूठा कट गया है!
देखो मेरी क्या हालत हो गयी। उधर से बीरबल आता है। हँसता हुआ,बोला- महाराज जो होता हैं। अच्छे के लिए होता है।
अख़बर-बीरबल तू क्या पागल हो गया है, मैं तुझे अपना समझता था और तू कैसी बेकार बातें कर रहा है।
अख़बर- एक काम करो सिपाहियों वेद को छोड़ो पहले इस बीरबल को ले जाओ ले जाकर के इसे उल्टा लटका दो पूरी रात के लिए और इसको कोड़े मारते रहना… और सुबह-सुबह इसको फाँसी दे देना।
सिपाही ले जाते हैं। बीरबल को…..उधर से अख़बर शिकार पे अकेला चला जाता है। अख़बर को कुछ आदिवासी पकड़ के ले जाते हैं।और उल्टा कर के लटका देते हैं। अब वहाँ आदिवासीयो का डांस चल रहा हैं।
इतने में एक आदिवासी की नज़र पड़ती हैं! अख़बर के कटे हुए अंगूठे की तरफ़। आदिवासी-अरे ये तो आसुद हैं।
हम इसकी वली नहीं चढ़ा सकते छोड़ दो इससे अख़बर को छोड़ दिया जाता हैं। अब अख़बर रो रहा है सुबह का टाइम हो चुका है।
अब तक तो बीरबल को फाँसी लग गई होगी। अख़बर चीख-पुकार रहा है। बीरबल-बीरबल………कहते हुए भागता हुआ आ रहा है। आके देखता है के बीरबल को फाँसी लगने वाली ही है रस्सी बंध चुकी हैं।
अख़बर जाकर के बीरबल के पैर पकड़ लेते हैं।
कहता है बीरबल मुझे माफ़ कर दो तुम ठीक कहते थे जो होता हैं अच्छे के लिए होता हैं।
देखो आज मैं तुम्हारी वजह से ज़िंदा हु और मुझे देखो मैं कितना घटिया इंसान हु
मैने तुम्हारा कितना बुरा हाल कर दिया।
बीरबल-टूटी-फूटी हालत में महाराज जो होता है। अच्छे के लिए होता हैं। अख़बर एक दम चौंक जाता हैं। अख़बर-बीरबल तू क्या पागल है क्या?
क्या बोल रहा है। जो होता है अच्छे के लिए होता इसमें अच्छा होने वाली क्या बात हैं? बीरबल- महाराज इसमें ये अच्छा है। अगर मैं आपके साथ गया होता तो वो लोग मेरी वली चढ़ा देते।
Moral Of This Story
कई बार हमारी ज़िन्दगी में भी बहुत सी ऐसी बातें हो जाती हैं। जो उस वक़्त तो हमें बुरी लगती हैं। लेकिन आगे जाके हमें मालूम पड़ेगा के वो जो हुआ था हमारे अच्छे के लिए ही हुआ था।
एक बार चार मित्र अपने कॉलेज के समय के प्रोफेसर से मिलने के लिए पहुचे। प्रोफेसर अब बूढ़े हो चुके थे।
बे उन चारों को देख कर बहुत खुश हुए।
कुछ देर बातें कर ने के बाद प्रोफेसर उनके लिए चाय बनाने के लिए अंदर गए।
बे चारो अपनी अपनी परेशानियां एक दूसरे को बताने लगे- कोई बोल रहा था कि मेरी सैलरी बहुत कम है,
कोई बोल रहा था मेरे पास गाड़ी नही है,
कोई कह रहा था कि मुझ पर बहुत कर्ज़ है।
बे अपने जीवन से खुश नही थे।
प्रोफ़ैसर उनकी बातें बहुत ध्यान से सुण रहव थे
उन्होंने 4 सुंदर कप लिए-
1. सोने का
2. चांदी का
3. काच का
4. साधारण
प्रोफेसर से चारो को आगे चाय रखी तो चारो ने एक एक कप उठा लिया।
प्रोफेसर ने देखा कि सोने का कप सबसे पहले उठा लिया गया, फिर चांदी का, फिर काच का और आखिर में जब कोई चॉइस न बची तो साधारण।
प्रोफेसेर ये देख कर मुस्कुराने लगे।
चारो ने उनके मुस्कुराने का कारण पूछा।
प्रोफेसर ने बताया कि मैं तुम्हारी बातें सुन रहा था।
इसी लिए मैने चारों कप अलग अलग लिए थे।
बे कुछ समझें नही तो प्रोफेसर ने उन्हें विस्तार में समझाया-
की ये चाय जीवन की तरह है और ये कप चाय पीने नज़रिया मात्र है। सबको पीना तो चाय ही है लेकिन
पहले सोने का कप उठाया गया फिर चांदी का।
जबकि मिट्टी के कप में भी बही चाय है जो सोने के कप में है।
उसी तरह जीवन भी एक चाय है जो सबके लिए समान है। लेकिन लोग सांसारिक चीजो जैसे- अच्छी जॉब, बड़ी गाड़ी, बड़ा बंगला, आदि के पीछे भागते हुए सारा जीवन दुख में ही निकाल देते हैं।
और जीवनरूपी चाय का आनंद नही उठा पाते।
इसी तरह क्या फर्क पड़ता है कि कप मिट्टी का है या सोने का पीना तो हमे आखिर चाय ही है
Moral Of This Story
इसी तरह सांसारिक चीजो के मोह में क्यों जीवन बर्बाद करते हो जीवन का आनंद लो। अपने लक्ष्य की और पूरा एफर्ट दो लेकिन खुश रहकर।
एक गांव में एक युवक रहा करता था-
बह युबक बहुत मेहनती था और अपने जीवन मे बहुत सफल व्यक्ति बनना चाहता था।
परंतु बह युवक किसी भी कार्य को करना शुरू करता तो बोह कार्य थोड़ा बहुत बढ़ने के बाद बन्द हो जाता था
इस तरह अपने कई कार्यो में असफल होने के कारण बह युवक बहुत परेशान रहने लगा था।
और बह उस रहस्य का पता लगाने लगा था जिससे लोगों को सफलता मिल जाती हो।
काफी समय तक उस युवक को सफलता पाने का रहस्य नही मिल पाया तब बह बड़े ही आधयात्मिक गुरु सुकरात के पास गया।
और उसने गुरु सुकरात को सारी बात बताई। सारी बात सुनने के बाद गुरु सुकरात ने अपने सामने बैठे हुए कई भक्तो को देखते हुए कहा- मैं तुमको ये राज़ सब के सामने नही बता सकता हूँ।
मैं शाम को अकेला नदी में स्नान(नहाने) के लिए जाता हूँ तुम मुझे बहाँ आकर मिलो, तब मैं तुम्हे सफलता का रहस्य अवश्य बताऊंगा।
युवक बहुत खुश हुआ और शाम को नदी के किनारे पहुच कर सुकरात से बोला- गुरु जी कोई यहां आए इससे पहले मुझे सफल होने का रहस्य बतला दीजिये।
सुकरात उस युवक को नदी के अंदर ले गए जहां पानी गले तक गहरा था।
युवक कुछ समझ पाता इससे पहले सुकरात ने युवक का सर पकड़कर पानी मे डुबो दिया।(hindi short stories with moral)
युवक अपना सर पानी से बाहर निकालने के लिए बुरी तरह झटपटने लगा, उसने सर बाहर निकलने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी।
फिर कुछ देर बाद सुकरात जी ने युवक का सर पानी से बाहर निकाला। युवक हांफता हुआ बहुत तेज तेज सांस लेने लगा।
युवक के शांत होने के बाद सुकरात जी ने उससे पूछा-
जब मैंने तुम्हारा सर पानी मे डुबोया था तब तुम सर को बाहर निकालने के लिए इतना जोर क्यों लगा रहे थे ?
क्योकि मैं कैसे भी करके सांस लेना चाहता था, मैं चाहता था कि मुझे कैसे भी बस सांस मिल जाये।
तब सुकरात जी ने युवक से कहाँ बस यही सफलता का रहस्य है।
जब तुम अपनी सफलता को अपनी सांसो की तरह जरूरत बना लोगे की वो तुम्हे कैसे भी करके चाहिए
तब तुम जरूर सफल होंगे।
युवक के सबकुछ समझ आ जाता है और वो खुशी खुसी बहाँ से चला जाता है।
शिक्षा– हमे अपने लक्ष्य की तरह बिना रुके और जी जान से बढ़ना चाहिए, उसे पाने की पूरी कोसिस करनी चाहिए।
चुनैतियों पर काबू पाने की सीख देती प्रेरणादायक कहानी
बादल अरबी नस्ल का एक शानदार घोड़ा था। वह अभी 1 साल का ही था और रोज अपने पिता – “राजा” के साथ ट्रैक पर जाता था। राजा
घोड़ों की बाधा दौड़ का चैंपियन था और कई सालों से वह अपने मालिक को बेहतर घुड़सवार का खिताब दिला रहा था।
बादल भी राजा की तरह बनना चाहता था…लेकिन इतनी ऊँची-ऊँची और कठिन बाधाओं को देखकर उसका मन छोटा हो जाता और वह सोचने लगता कि वह कभी अपने पिता की तरह नहीं बन पायेगा।
एक दिन जब राजा ने बादल को ट्रैक के किनारे उदास खड़े देखा तो बोला, ” क्या हुआ बेटा तुम इस तरह उदास क्यों खड़े हो?”
“कुछ नहीं पिताजी…आज मैंने आपकी तरह उस पहली बाधा को कूदने की कोसिस किया लेकिन मैं मुंह के बल गिर पड़ा…मैं कभी आपकी तरह काबिल नहीं बन पाऊंगा…
राजा बादल की बात समझ गया। अगले दिन सुबह-सुबह वह बादल को लेकर ट्रैक पर आया और एक लकड़ी के लट्ठ की तरफ इशारा करते हुए बोला- ” चलो बादल, ज़रा उसे लट्ठ के ऊपर से कूद कर तो दिखाओ।”
बादला हंसते हुए बोला, “क्या पिताजी, वो तो ज़मीन पे पड़ा है…उसे कूदने में क्या रखा है…मैं तो उन बाधाओं को कूदना चाहता हूँ जिन्हें आप कूदते हैं।”
“मैं जैसा कहता हूँ करो।”, राजा ने लगभग डपटते हुए कहा।
अगले ही क्षण बादल लकड़ी के लट्ठ की और दौड़ा और उसे कूद कर पार कर गया
शाबाश! ऐसे ही बार-बार कूद कर दिखाओ!”, राजा उसका उत्साह बढाता रहा।
अगले दिन बादल उत्साहित था कि शायद आज उसे बड़ी बाधाओं को कूदने का मौका मिले पर राजा ने फिर उसी लट्ठ को कूदने का बोला।
करीब 1 हफ्ते ऐसे ही चलता रहा फिर उसके बाद राजा ने बादल से थोड़े और बड़े लट्ठ कूदने की प्रैक्टिस कराई।
इस तरह हर हफ्ते थोड़ा-थोड़ा कर के बादल के कूदने की क्षमता बढती गयी और एक दिन वो भी आ गया जब राजा उसे ट्रैक पर ले गया।
महीनो बाद आज एक बार फिर बादल उसी बाधा के सामने खड़ा था जिस पर पिछली बार वह मुंह के बल गिर पड़ा था… बादल ने दौड़ना शुरू किया… उसके टापों की आवाज़ साफ़ सुनी जा सकती थी… 1…2…3….जम्प….और बादल बाधा के उस पार था।
आज बादल की ख़ुशी का ठिकाना न था…आज उसे अन्दर से विश्वास हो गया कि एक दिन वो भी अपने पिता की तरह चैंपियन घोड़ा बन सकता है और इस विश्वास के बलबूते आगे चल कर बादल भी एक चैंपियन घोड़ा बना।
दोस्तों, बहुत से लोग सिर्फ इसलिए goals achieve नहीं कर पाते क्योंकि वो एक बड़े challenge या obstacle को छोटे-छोटे challenges में divide नहीं कर पाते। इसलिए अगर आप भी अपनी life में एक champion बनना चाहते हैं…एक बड़ा लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो systematically उसे पाने के लिए आगे बढिए… पहले छोटी-छोटी बाधाओं को पार करिए और ultimately उस बड़े goal को achieve कर अपना जीवन सफल बनाइये।
Moral of the story is
जल्दी हार मत मानिए, बल्कि छोटे से शुरू करिए और कोसिस जारी रखिये…इस तरह आप उस लक्ष्य को भी प्राप्त कर पायेंगे जो आज असंभव लगता है।
किसी राजा के राजमहल में एक बन्दर सेवक के रुप में रहता था । वह राजा का बहुत विश्वास-पात्र और भक्त था । अन्तःपुर में भी वह बेरोक-टोक जा सकता था ।
एक दिन जब राजा सो रहा था और बन्दर पङखा झल रहा था तो बन्दर ने देखा, एक मक्खी बार-बार राजा की छाती पर बैठ जाती थी । पंखे से बार-बार हटाने पर भी वह मानती नहीं थी, उड़कर फिर वहीं बैठी जाती थी ।
बन्दर को क्रोध आ गया । उसने पंखा छोड़ कर हाथ में तलवार ले ली; और इस बार जब मक्खी राजा की छाती पर बैठी तो उसने पूरे बल से मक्खी पर तलवार का हाथ छोड़ दिया । मक्खी तो उड़ गई, लेकिन राजा की छाती तलवार की चोट से दो टुकडे़ हो गई । राजा मर गया ।
Moral Of The Story:
इसीलिए मूर्ख मित्र की अपेक्षा विद्वान् शत्रु को अच्छा ज्यादा अच्छा होता है।”
एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ नदी में स्नान कर रहे थे | तभी एक राहगीर वंहा से गुजरा तो महात्मा को नदी में नहाते देख वो उनसे कुछ पूछने के लिए रुक गया | वो संत से पूछने लगा ” महात्मन एक बात बताईये कि यंहा रहने वाले लोग कैसे है क्योंकि मैं अभी अभी इस जगह पर आया हूँ और नया होने के कारण मुझे इस जगह को कोई विशेष जानकारी नहीं है |”
इस पर महात्मा ने उस व्यक्ति से कहा कि ” भाई में तुम्हारे सवाल का जवाब बाद में दूंगा पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम जिस जगह से आये वो वंहा के लोग कैसे है ?” इस पर उस आदमी ने कहा “उनके बारे में क्या कहूँ महाराज वंहा तो एक से एक कपटी और दुष्ट लोग रहते है इसलिए तो उन्हें छोड़कर यंहा बसेरा करने के लिए आया हूँ |” महात्मा ने जवाब दिया बंधू ” तुम्हे इस गाँव में भी वेसे ही लोग मिलेंगे कपटी दुष्ट और बुरे |” वह आदमी आगे बढ़ गया |
थोड़ी देर बाद एक और राहगीर उसी मार्ग से गुजरता है और महात्मा से प्रणाम करने के बाद कहता है ” महात्मा जी मैं इस गाँव में नया हूँ और परदेश से आया हूँ और इस ग्राम में बसने की इच्छा रखता हूँ लेकिन मुझे यंहा की कोई खास जानकारी नहीं है इसलिए आप मुझे बता सकते है ये जगह कैसे है और यंहा रहने वाले लोग कैसे है ?”
महात्मा ने इस पर फिर वही प्रश्न किया और उनसे कहा कि ” मैं तुम्हारे सवाल का जवाब तो दूंगा लेकिन बाद में पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम पीछे से जिस देश से भी आये हो वंहा रहने वाले लोग कैसे है ??”
उस व्यक्ति ने महात्मा से कहा ” गुरूजी जन्हा से मैं आया हूँ वंहा भी सभ्य सुलझे हुए और नेकदिल इन्सान रहते है मेरा वंहा से कंही और जाने का कोई मन नहीं था लेकिन व्यापार के सिलसिले में इस और आया हूँ और यंहा की आबोहवा भी मुझे भा गयी है इसलिए मेने आपसे ये सवाल पूछा था |” इस पर महात्मा ने उसे कहा बंधू ” तुम्हे यंहा भी नेकदिल और भले इन्सान मिलेंगे |” वह राहगीर भी उन्हें प्रणाम करके आगे बढ़ गया |
शिष्य ये सब देख रहे थे तो उन्होंने ने उस राहगीर के जाते ही पूछा गुरूजी ये क्या अपने दोनों राहगीरों को अलग अलग जवाब दिए हमे कुछ भी समझ नहीं आया | इस पर मुस्कुराकर महात्मा बोले वत्स आमतौर पर हम आपने आस पास की चीजों को जैसे देखते है वैसे वो होती नहीं है इसलिए हम अपने अनुसार अपनी दृष्टि (point of view) से चीजों को देखते है और ठीक उसी तरह जैसे हम है |
अगर हम अच्छाई देखना चाहें तो हमे अच्छे लोग मिल जायेंगे और अगर हम बुराई देखना चाहें तो हमे बुरे लोग ही मिलेंगे | सब देखने के नजरिये ( point of view in hindi ) पर निर्भर करता है ।
यही जिन्दगी का सार है |
सऊदी अरब में बुखारी नामक एक विद्वान रहते थे। वह अपनी ईमानदारी के लिए मशहूर थे। एक बार वह समुद्री जहाज से लंबी यात्रा पर निकले।
उन्होंने सफर में खर्च के लिए एक हजार दीनार रख लिए। यात्रा के दौरान बुखारी की पहचान दूसरे यात्रियों से हुई। बुखारी उन्हें ज्ञान की बातें बताते गए।
एक यात्री से उनकी नजदीकियां कुछ ज्यादा बढ़ गईं। एक दिन बातों-बातों में बुखारी ने उसे दीनार की पोटली दिखा दी। उस यात्री को लालच आ गया।
उसने उनकी पोटली हथियाने की योजना बनाई। एक सुबह उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘हाय मैं मार गया। मेरा एक हजार दीनार चोरी हो गया।’ वह रोने लगा।
जहाज के कर्मचारियों ने कहा, ‘तुम घबराते क्यों हो। जिसने चोरी की होगी, वह यहीं होगा। हम एक-एक की तलाशी लेते हैं। वह पकड़ा जाएगा।’
यात्रियों की तलाशी शुरू हुई। जब बुखारी की बारी आई तो जहाज के कर्मचारियों और यात्रियों ने उनसे कहा, ‘आपकी क्या तलाशी ली जाए। आप पर तो शक करना ही गुनाह है।’
यह सुन कर बुखारी बोले, ‘नहीं, जिसके दीनार चोरी हुए है उसके दिल में शक बना रहेगा। इसलिए मेरी भी तलाशी भी जाए।’ बुखारी की तलाशी ली गई। उनके पास से कुछ नहीं मिला।
दो दिनों के बाद उसी यात्री ने उदास मन से बुखारी से पूछा, ‘आपके पास तो एक हजार दीनार थे, वे कहां गए?’ बुखारी ने मुस्करा कर कहा, ‘उन्हें मैंने समुद्र में फेंक दिया। तुम जानना चाहते हो क्यों?
क्योंकि मैंने जीवन में दो ही दौलत कमाई थीं- एक ईमानदारी और दूसरा लोगों का विश्वास। अगर मेरे पास से दीनार बरामद होते और मैं लोगों से कहता कि ये मेरे हैं तो लोग यकीन भी कर लेते लेकिन फिर भी मेरी ईमानदारी और सच्चाई पर लोगों का शक बना रहता।
मैं दौलत तो गंवा सकता हूं लेकिन ईमानदारी और सच्चाई को खोना नहीं चाहता।’ उस यात्री ने बुखारी से माफी मांगी।
मास्टर जी क्लास में पढ़ा रहे थे , तभी पीछे से दो बच्चों के आपस में झगड़ा करने की आवाज़ आने लगी।
“क्या हुआ तुम लोग इस तरह झगड़ क्यों रहे हो ? ” , मास्टर जी ने पूछा।
राहुल : सर , अमित अपनी बात को लेकर अड़ा है और मेरी सुनने को तैयार ही नहीं है।
अमित : नहीं सर , राहुल जो कह रहा है वो बिलकुल गलत है इसलिए उसकी बात सुनने से कोई फायदा नही।
और ऐसा कह कर वे फिर तू-तू मैं-मैं करने लगे।
मास्टर जी ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा , ” एक मिनट तुम दोनों यहाँ मेरे पास आ जाओ। राहुल तुम डेस्क की बाईं और अमित तुम दाईं तरफ खड़े हो जाओ। “
इसके बाद मास्टर जी ने कवर्ड से एक बड़ी सी गेंद निकाली और डेस्क के बीचो-बीच रख दी।
मास्टर जी : राहुल तुम बताओ , ये गेंद किस रंग की है।
राहुल : जी ये सफ़ेद रंग की है।
मास्टर जी : अमित तुम बताओ ये गेंद किस रंग की है ?
अमित : जी ये बिलकुल काली है।
दोनों ही अपने जवाब को लेकर पूरी तरह कॉंफिडेंट थे की उनका जवाब सही है , और एक बार फिर वे गेंद के रंग को लेकर एक दुसरे से बहस करने लगे.
मास्टर जी ने उन्हें शांत कराते हुए कहा , ” ठहरो , अब तुम दोनों अपने अपने स्थान बदल लो और फिर बताओ की गेंद किस रंग की है ?”
दोनों ने ऐसा ही किया , पर इस बार उनके जवाब भी बदल चुके थे।
राहुल ने गेंद का रंग काला तो अमित ने सफ़ेद बताया।
अब मास्टर जी गंभीर होते हुए बोले ,” बच्चों , ये गेंद दो रंगो से बनी है और जिस तरह यह एक जगह से देखने पे काली और दूसरी जगह से देखने पर सफ़ेद दिखती है उसी प्रकार हमारे जीवन में भी हर एक चीज को अलग – अलग दृष्टिकोण से देखा जा सकता है।
ये ज़रूरी नहीं है की जिस तरह से आप किसी चीज को देखते हैं उसी तरह दूसरा भी उसे देखे….. इसलिए अगर कभी हमारे बीच विचारों को लेकर मतभेद हो तो ये ना सोचें की सामने वाला बिलकुल गलत है बल्कि चीजों को उसके नज़रिये से देखने और उसे अपना नजरिया समझाने का प्रयास करें। तभी आप एक अर्थपूर्ण संवाद कर सकते हैं। “
दोस्तों आपको ये Hindi Short Stories With Moral For Kids कहानियां कैसी लगी? आप हमें नीचे दिए गए कम्मेंट सेक्शन में ज़रूर बताये।
Famous Story In Hindi For kids पढ़ने के लिए धन्यवाद जो वास्तव में आपको ज़िन्दगी की कई बातें सीखने में मदद करती है जो आजकल ज़रूरी हैं। Hindi Short Stories With Moral for Kids उन बच्चों के लिए बहुत करती है जिनकी उम्र 13 साल से कम है। अगर आप और कहानियाँ पढ़ना चाहते हैं फिर आप ऊपर दिए गए लिंक पर क्लिक करें जो कि बहुत दिलचस्प कहानियाँ है।
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